First punayatithi
बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई
इक शख़्स सारे शहर को वीरान कर गया
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अब नहीं लौट के आने वाला
घर खुला छोड़ के जाने वाला
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एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा
आँख हैरान है क्या शख़्स ज़माने से उठा
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हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
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जाने वाले कभी नहीं आते
जाने वालों की याद आती है
You can to the family or in memory of Hariom Verma.
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